उड़ता पंजाब तीर
पुराने समय की बात है. एक राजा था और उसे जानवरों से काफी लगाव था. एक दिन राजा को एक बन्दर दिखा और उसे उसकी कलाबाजियां इतनी पसंद आयी कि वो बंदर को महल ले आया और अपने साथ रखने लगा. बन्दर भी राजा के ध्यान रखने से बहुत खुश था, हालाँकि उसने कभी खुद को राजा को चमचा तो नहीं कहा पर राजा के लिए कुछ करने की इच्छा उसके मन में थी. एक दिन राजा सो रहा था, तभी बन्दर को कमरे में एक मक्खी उडती दिखाई दी. मक्खी राजा को परेशान न करे इसलिए उसने मक्खी को मारने के लिए तलवार उठा ली. इसी दौरान मक्खी जाकर राजा की नाक पर बैठ गयी. बन्दर ने जैसे ही मक्खी को राजा की नाक पर बैठे देखा, उसने तलवार उठाकर मक्खी को दे मारी. मक्खी तो उड़ गयी पर राजा की नाक….
एक मामूली सा फिल्म का विवाद जो कई बरसों से सेंसर बोर्ड और फिल्मकारों के बीच चलता रहा है और अनुराग कश्यप के साथ तो अक्सर ही रहा है, उसे ‘खड़ा है, खड़ा है’ जैसे भक्ति संगीत वाली फिल्म बनाने वाले पहलाज निहलानी ने ऐसी हवा दी कि ये आज न सिर्फ एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बन गया है बल्कि पंजाब चुनाव में विपक्षी पार्टियों के हाथ में बड़ा हथियार हो गया है.
भाजपा या मोदी जिनका प्रत्यक्ष रूप से इस पूरे मसले से कोई लेना-देना नहीं था वो निहलानी की वजह से भाजपा बनाम अन्य हो गया है. आम आदमी पार्टी जिस ड्रग्स के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहती थी, उसे आज की तारीख में एक बड़ा मुद्दा निहलानी ने बना के ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है जो भाजपा से न उगलते बनेगा और न निगलते.
पहलाज निहलानी नरेन्द्र मोदी के लिए वही बंदर साबित हो रहे है जो मक्खी उड़ाने के लिए तलवार इस्तेमाल करते हैं. परन्तु मोदी की समस्या सिर्फ एक बन्दर नहीं बल्कि बंदरों का झुण्ड है. कुछ अनुषांगिक संगठनों ने पैदा किये हैं तो कुछ खुद पैदा हो गए जिन्हें भारतीय सोशल मीडिया में ‘भक्त’ कहा जाता है. इन ‘भक्त’ रुपी बंदरों की समस्या ये है कि ये खुद को हनुमान समझ लेते हैं जो कि ये हैं नहीं और अक्सर लंका की जगह अपने घर में आग लगा लेते हैं. इन्हें न पंजाब के बारे में पता है, न नशे के बारे में और न ही अनुराग कश्यप के बारे में. इन्हें सिर्फ एक चीज पता चली कि अरविन्द केजरीवाल ने ‘उड़ता पंजाब’ को बैन करने का विरोध करते हुए अनुराग कश्यप की ट्वीट को री-ट्वीट किया है. बस इतना काफी था इनके लिए अनुराग कश्यप को ‘आपिया’ बनाने के लिए और ये सब निहलानी के क्लोन की तरह तलवार उठा के मक्खी मारने चल पड़े.
अरे भाई, केजरीवाल जी का बैन के खिलाफ बोलना बनता है इसलिए नहीं कि वो ड्रग्स के खिलाफ है या अनुराग के समर्थक हैं, बल्कि इसलिए कि एक काम जो वो पूरी शिद्दत से करते है – फिल्म रिव्यू, उसे नहीं कर पाएंगे. 17 जून की डेट ब्लाक थी, ट्वीट लिख लिया था पर सब बेकार है अब.
अब आते हैं फिल्म को लेकर अनुराग कश्यप पर लगे आरोपों पर. अकालियों का कहना है कि पंजाब को बदनाम किया जा रहा है, तो वहीँ निहलानी का कहना है कि अनुराग ने आम आदमी पार्टी से पैसे लिए हैं इस काम के लिए. निहलानी साहब वहाँ फिल्म को सर्टिफिकेट देने बैठे हैं या ‘उड़ता पंजाब’ का अकाउंट चेक करने? फिल्मों में गाली हो या नहीं इस पर आप चाहे जितनी बहस करते रहिये पर जहाँ तक मुझे समझ में आता है इस मसले में अनुराग कश्यप ज्यादा सही हैं और ऐसा मानने के पीछे 3 वजहें हैं –
1. पंजाब में मैंने 3 साल रह कर काम किया है और इसके अलावा दिल्ली आने पर भी 3-4 साल तक पंजाब मेरे कार्यक्षेत्र में था. काम के सिलसिले में बहुत भीतर तक गया हूँ और इस संपन्न राज्य के बहुत से हिस्से घूमा हूँ इसलिए ड्रग्स के मसले में जमीनी हकीकत से अगर पूरी तरह नहीं तो भी काफी हद तक वाकिफ हूँ. पंजाबियों से पूछिए कि उनके राज्य में नशे की बिक्री की हालत क्या है? पंजाब में ड्रग्स पाकिस्तान से उसी रस्ते से होकर पुलिस और नेताओं के सहयोग से आता है जिस रस्ते से पठानकोट वाले आतंकी आये थे.
2. अनुराग ने पहली बार ऐसी फिल्म नहीं बनायीं है जिसके कंटेंट को लेकर विवाद हुआ हो. उनकी पहली फिल्म ‘पांच’ तो रिलीज़ ही नहीं हो पाई. अनुराग की अधिकांश फ़िल्में वास्तविक घटनाओं के करीब रही हैं चाहे वो ब्लैक फ्राइडे हो, गुलाल या गैंग्स ऑफ़ वासेपुर हो. इसलिए उड़ता पंजाब कोई नया एक्सपेरिमेंट नहीं है कि इसे साजिश माना जाये. वैसे भी ये फिल्म 3 साल पहले बननी शुरू हो गयी थी.
I request Congress, AAP and other political parties to stay out of my battle. It’s my Rights vs the Censorship. I speak only on my behalf
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) June 7, 2016
3. जब केजरीवाल ने अनुराग को समर्थन दिया तो उसने खुले आम नाम लेकर आप और कांग्रेस को दूर रहने को कहा है क्योंकि ये उसकी लड़ाई है फिल्म को लेकर न कि राजनीती की.
पिछले कई विवादों में अगर इस फिल्म विवाद को भी जोड़ कर देखें तो एक चीज समझ में आती है कि भाजपा के पास रणनीतिकार कम और बन्दर ज्यादा हैं जिनकी वजह से सरकार के सब किये धरे काम ऐसे टुच्चे मसलों पर खर्च हो जाते हैं जहाँ उनका सीधा-सीधा कोई लेना देना नहीं.
समय आ गया है जब भाजपा ये समझ ले कि मक्खी को हाथ से उड़ाया जा सकता है. उसे उड़ाने के लिए ना तो बन्दर चाहिए होता है और न ही तलवार. अगर ये सब यूँ ही चलता रहा तो उड़ता पंजाब जो उड़ता तीर बन चुका है उसे लगने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
चलते-चलते एक बात और. जिन अनुराग कश्यप को हिंदुस्तान नार्थ कोरिया लग रहा है उन्हें शायद ये नहीं पता कि नार्थ कोरिया में इतना कहने के लिए आदमी को शांतिपूर्वक आराम करना पड़ता है जिसे अंग्रेजी में ‘Rest in Piece (RIP)’ कहते हैं.
इन सबके बाद भी यही कहूँगा कि फिल्म रिलीज़ तो होनी चाहिए जब तक कि वो किसी व्यक्ति विशेष को बदनाम न कर रही हो. जय हिन्द.