मिजाजपुर्सी एक दोस्त की
पता है न चोट लग गयी है मुझे, टांग तुड़वा बैठा हूँ| अब तुड़वाई तो दोस्तों ने हाल चाल पूछा, जल्दी ठीक होने की दुआएं दी| अब मित्र दो प्रकार के हैं – एक जो आपको जानते हैं और एक जो बचपन से जानते हैं| तो दोनों प्रकार के मित्रों ने दुआ दी और कैसे दी ये देखिये:
मित्र जो जानते है:
इनमें सब आ जाते है, सोशल सर्कल, ऑफिस वाले, परिचित, पुराने ऑफिस के मित्र| ये सब कमोबेश एक ही तरह से हाल पूछेंगे:
कैसे हुआ? अभी तबियत कैसी है? दवाई ले रहे है या नहीं? आराम करिये और अपना ध्यान रखिये|
कुछ जो और करीबी होंगे पूछ लेंगे एप्रेजल कैसा हुआ? आप कह दीजिए अच्छा नहीं हुआ फिर कहेंगे सही बोल, छोड़, मत जा अभी, आराम कर पूरा महीना, मौका मिला है| जितना पैसा उतना काम|
बचपन के मित्र / पुराने मित्र:
ये प्रजाति खतरनाक होती है| दुआ करिये की जब इनका फोन आये तो आप न तो डॉक्टर के पास हों और न ही कोई आपके आस पास हो, वरना बातें सुन कर उसको यकीन नहीं होगा की आप तकलीफ में हैं|
इन मित्रों के साथ सबसे बड़ी समस्या ये होती है की पहले 5-10 मिनट तो ये यकीन ही नहीं करते की आपको चोट लगी है| ये मानते हैं की आप कुछ ड्रामा कर रहे हैं| अब देखिये ऐसे कुछ मित्र किस तरह फोन पर मिजाजपुर्सी करते हैं|
मित्र: क्या हुआ बे? ये क्या फेसबुक पे फोटो लगाये हो?
मैं: लग गयी यार|
मित्र: सच सच बता, कहाँ जा रहा है घूमने?
मैं: घूमने?? अबे टांग टूटी है, इसमें कहाँ जाऊंगा?
मित्र: ड्रामा मत कर साले, सब पता है छुट्टी लेने का बहाना हैं तेरा|
मैं: अब मत मान| फ्रेक्चर हो रखा है|
मित्र: सच्ची में? कब हुआ?
मैं: सोमवार को|
मित्र: सही है बेटा, शनिवार को ही निकल गया तू घूमने और सोमवार को बहाना मार दिया, अब पूरे हफ्ते छुट्टी मारेगा|
मैं: अबे बाइक से गिर गया| फ्रेक्चर है|
मित्र: तू बाइक चला रहा था? अबे साइकल तो चलती नहीं तेरे से, बाइक क्यों चलाने लगा? कौन सी बाइक है?
मैं: वही जो पहली जॉब के टाइम खरीदी थी|
मित्र: तो भाई, इतनी पुरानी बाइक चलाते नहीं है, म्यूजियम में रखते है|
मित्र: अच्छा एक बात सच सच बता, गिर गया या किसी ने कूटा तेरे को?
मैं – #%&^#^@#@^*@# बीप बीप बीप
मित्र: अच्छा चल मान लिया बाइक से गिर गया, ये बता किसको देख रहा था? कहाँ हुआ?
मैं: बीप बीप, मैं अपनी ही गली में था| एक दूसरी बाइक ने कट मार दिया अचानक और मैं स्लिप हो गया|
मित्र: तूने कुछ कहा नहीं उसे? कूटना था स्साले को|
मैं: साथ में उसके बीवी और बच्चा थे, क्या कहता?
मित्र: अब समझा, तू उसकी बीवी को देख रहा होगा और उसने कूटा तुझे|
मैं: तेरी #%&^#^@#@^*@# बीप बीप बीप
मित्र: हाहाहा| लगी कहाँ?
मैं: घुटने में|
मित्र: फिर जायेगा कैसे सुबह? खड़े खड़े करेगा?
मैं: बकवास बंद कर| हमारे यहाँ अंग्रेजों के ज़माने के लगे हुए हैं| हाहाहा |
मित्र: चल कोई ना| अब तो घर पर बैठा है| मस्त दारू पी| बीयर की पेटी मंगा ले| गर्मी का टाइम है, दिन अच्छा कट जायेगा|
मैं: एंटीबायोटिक खा रहा हूँ| उसके साथ दारू नहीं पी सकता|
मित्र: साथ में किसने बोला है? दवाई पहले खा, फिर दारू पी|
मैं: भाई मेरे, एंटीबायोटिक में पहले, बाद में, साथ में, कैसे भी दारु नहीं पीते|
मित्र: तू दारू नहीं पिएगा? कितने दिन तक?
मैं: 3 हफ्ते की दवाई है| तब तक कुछ नहीं, बिस्तर पर आराम|
मित्र: तू तीन हफ्ते तक दारु नहीं पिएगा? ओ तेरी.. मतलब सच्ची में फ्रेक्चर हो गया क्या तेरे को?
Matbal ye ki aapke bachpan ke dost aapko achii tarah se pehchaante hain. 🙂
wonderful
facebook par kataksh page ke maadhyam se mai is post par pahuncha….bilkul sahi varnan kiya hai aapne..acha laga padh kar…:)
dhanyawad abhilash
चलो टूटे टाँग ने तुम्हारे टूटे ब्लाग के सिलसिले को चालू तो किया.
हाँ मैंने तुम्हारे लिए संस्कृत की विशेष कक्षा लगाई थी उसका जिक्र क्यों नहीं?
kya baat..kya baat..kya baat
hahaha
hahahaha awesome peace of writing hatts offf 🙂 n get well sooonnn
thanks PK
thanks ashish
HA HA HA…. really cool… its true friends many times feel we make fake excuses to enjoy a holiday ……….
रोचक प्रस्तुति. मज़ा आ गया.
Dhanyawad Rakesh ji
हा हा हा शुक्रिया इस दुःख भरी दास्ताँ-ए- फ्रैक्चर से रु-ब-रु कराने के लिए