किताबें और इश्क़
अक्तूबर के लिए इस बार 3 किताबें लाये थे। 2 नयी ऑर एक थोड़ी पुरानी। तो हुज़ूर तो ये तीन किताबें थी इरम फातिमा की With You Forever, रवीश कुमार की इश्क़ मे शहर हो जाना और दिव्य प्रकाश दुबे की मुसाफिर कैफे। थी तो तीनों ही किताबें इश्क़ पर, मिज़ाज तीनों का ही कुछ जुदा सा था, लेकिन जो एक बात कॉमन थी वो ये कि तीनों की कहानियाँ वो टिपिकल वाली लव स्टोरी नहीं है। तीनों मे एक अलग तरह का अंदाज़ है। पढ़ा, पसंद आयी, सोचा आपको भी बता दें। क्या पता आप को भी पढ़ने का शौक हो।
With You Forever – Iram Fatima ‘Ashi’
इरम की किताब के बारे में सबसे पहले लिखने की दो वजहें हैं। पहली कि इरम मेरी स्कूल के टाइम से दोस्त है तो दोस्ती निभानी पड़ेगी। दूसरी और जरूरी बात – ये कहानी स्टोरी-टेलिंग के रूटीन तरीके से कुछ हटकर कही गयी है। कहानी सन 2000 के आसपास घूमती है जहां अमित ऑर मारिया एक दूसरे से मिलते हैं पर शादी नहीं कर पाते ऑर उन्हें अलग होना पड़ता है। उस अलग होने के बाद की कहानी में ही सारा रस है इस किताब का।
इरम ने कहानी में नेरेटर अमित को बनाया है और सबसे ज्यादा काबिल-ए-तारीफ बात यहीं लगी मुझे। जिस तरीके से अमित के विचारों को उन्होने कहानी मे दिखाया है, ऐसा लगता ही नहीं कि ये किसी लड़की का लिखा हुआ है। नेरेटर अक्सर हीरो होता है ऑर वैसा ही दिखाया जाता है पर इस कहानी मे ऐसा नहीं। यहाँ नेरेटर किसी भी आम लड़के सा है जो हीरो हो नहीं पाता। कैरक्टर को पढ़ के यूं लगता है कि इरम ने उस कैरक्टर को जिया है लिखने से पहले। मारिया का कैरक्टर थोड़ा सा कम एक्सप्लेन किया गया है जिससे वो थोड़ी से रहस्यमयी सी हो गयी है। लेकिन उस जमाने मे लड़कियां कुछ ऐसी ही होती थी और हम लड़के उनके चक्कर में कन्फ्युज।
इस जमाने के लड़के लड़कियों को ये किताब इसलिए भी पढ़नी चाहिए कि उन्हें पता लग सके कि वो टाइम कैसा होता था जब मोबाइल ऑर व्हाट्स एप्प न थे बॉयफ्रेंड / गर्लफ्रेंड से बात करने के लिए। कैसे घंटों इंतज़ार करना होता था कि इस टाइम पर वो फोन उठाएगी ऑर साथ मे ये भी ध्यान रखना होता था कि धोखे मे उसकी बहन से बात न हो जाए। मेरे जमाने वालों को इसलिए भी पढ़नी चाहिए ताकि एक बार अपने ‘उस टाइम’ को हम जी ले।
हम लिख हिन्दी में रहे हैं पर किताब अँग्रेजी में है। ये इसलिए भी बता रहे हैं कि आपको पता रहे हमें अँग्रेजी पढ़नी आती है। किताब इसी महीने आई है ऑर अमेज़न पर उपलब्ध है। आप चाहें तो नीचे के लिंक को क्लिक करके भी किताब खरीद सकते हैं। कवर फोटो पर क्लिक करते ही किताब खरीदने वाला पेज आपके सामने प्रकट हो उठेगा।
इश्क़ मे शहर होना – रवीश कुमार
रवीश को हमेशा पत्रकार के रूप मे ही देखा है और ये उनका नया रूप है। ये किताब शायद 2 साल पहले आ चुकी पर मैंने अभी पढ़ी तो अभी बताऊंगा न। ये वाली हिन्दी में हैं। इस किताब की कहानियों को लप्रेक कहा जाता है। लप्रेक माने लघु प्रेम कथा। मुझे ये फुल फॉर्म अभी पता चला ऑर तब जाके किताब खरीदी।
मुझे पहली बार पता चला कि एक पैराग्राफ मे भी प्रेम कथा कही जा सकती है। दरअसल ये प्रेम कथाएँ पूरी कहानियाँ नहीं पर कहानियों का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है। इस किताब को पढ़ के लगता है कि कैसे एक कहानी के अंदर ही कितनी छोटी-छोटी कहानियाँ होती है। इश्क़ मे शहर होना – इस नाम की एक खास वजह है ऑर वजह ये कि रवीश अपनी पूरी कहानी को शहर ऑर उसके हिस्सों से जोड़ते हुये कहते हैं। कैसे करावल नगर ऑर GK एक ही शहर में होके अलग क्लास के होते हैं ऑर कैसे दोनों जगहों का इश्क़ कुछ अलग सा हो जाता हैं।
शुरू की 2-3 कहानियाँ सिंबोलीक ज्यादा थी पर उसके बाद सीएनजी वाले ऑटो में बैठ कर मैं उन आशिकों के साथ दिल्ली घूम लिया। किताब अमेज़न पर उपलब्ध है। आपकी सुविधा के लिए लिंक नीचे दिया गया है। किताब के कवर पर क्लिक करें ओर बिना टिकिट अमेज़न पर घूम आयें।
मुसाफिर कैफे – दिव्य प्रकाश दुबे
मुसाफिर कैफे मैंने सबसे अंत मे पढ़ी ऑर ऐसा जान बूझकर किया गया। वो आदत होती है न अंत मे स्वीट डिश खाने की, तो बस इसीलिए मैंने इस कहानी को स्वीट डिश की तरह आखिर के लिए रखा। जहां इरम की कहानी मे दोनों की शादी नहीं हो पाती, वहीं इस कहानी मे लड़की शादी ही नहीं करना चाहती।
चंदर, सुधा ऑर पम्मी – दिव्य ने कहानी के पात्रों के नाम धर्मवीर भारती की किताब ‘गुनाहों का देवता’ से लिए हैं, लेकिन इनका कोई भी संबंध पहले वाली किताब से नहीं है।
मुसाफिर कैफ़ की कहानी शुरू मे गुदगुदाती है और फिर धीरे-धीरे एक अलग मोड़ की ऑर ले जाती है जहां जाकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की क्या वाकई प्यार का अंत शादी ही है या शादी ही होनी चाहिए? क्या प्यार को यूं ही जिंदा नहीं रखा जा सकता। दिव्य ने इन भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से पन्नों पर उकेरा हैं। अगर आप नयी वाली हिन्दी पढ़ने के शौकीन है तो नीचे वाला लिंक आपका इंतज़ार कर रहा है। कवर पर क्लिक करें, कृपा आएगी।
‘With You Forever’ by Iram Fatima ‘Ashi’ बेशक अंग्रेजी मे है लेकिन उस मे, उस ज़माने के हिन्दुस्तानी कलचर को बखूबी दर्शाया गया है| इस ब्लॉग पोस्ट मे दी गयी सारी बातों से में सेहमत हु| बहुत ही अच्छा पोस्ट लिखा है नवीन साहब, बधाई|